एपिसोड
एपिसोड 1
इस एपिसोड की कविताएं स्वंतंत्रता, आज़ादी के बारे में हैं. आज़ादी क्या- क्या हो सकती है, ये लेखक metaphors के ज़रिये पेश करते हैं, जो उनके जीवन अनुभवों से लिए गए हैं. इसमें शामिल समीक्षा कुदरत से जुड़े metaphors को गौर से समझने की कोशिश करती है, वो metaphors जो हमें तरह-तरह se याद दिलाते हैं कि आज़ादी एक-दूसरे से मिलने और जुड़ते रहने पर कायम है, और जब तक आज़ादी सबके लिए ना हो तो उसका होना अधूरा ही रहेगा. इस एपिसोड में पुरस्कार-विजेता बच्चों की लेखक अनुष्का रविशंकर ने कविताओं पर प्रतिक्रिया दी है।
अतिथि के बारे में
अनुष्का रविशंकर बच्चों की किताबों की लेखिका हैं जो अक्सर कविताएँ लिखती हैं. जो
बच्चों को हँसाती हैं और उन्हें शब्दों और ध्वनियों के आनंद से परिचित कराती हैं।
उनके कुछ पुरस्कृत किताबों में शामिल हैं:
• Alphabets are Amazing Animals
• Excuse Me, Is this India?
• Moin and the Monster
• Tiger on a Tree
• Today is My Day
एपिसोड 2
इस एपिसोड में मिडिल स्कूल के बच्चों द्वारा लिखी गई कविताओं का एक संग्रह है जो इस बात पर खोज-ओ-ख़याल करती हैं कि वह क्या चीज़ें हैं जो उन्हें हिंदुस्तानी बनाती हैं। कविताएँ हमें राष्ट्रीयता और अपनेपन के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, और दिखाती हैं कि ये कैसे रोजमर्रा के अनुभवों से जुड़े हुए हैं। क्या हम एक ऐसे अपनेपन के बारे में सोच सकते हैं जिसे अपनी बढ़त पर बे-इन्तेहाँ यकीन हो? जिसे छोड़ना न आता हो बस साथ लिए चलना आता हो? इस एपिसोड में कवि, लेखक और संपादक सुशील शुक्ल की इन कविताओं पर प्रतिक्रिया शामिल है।
अतिथि के बारे में
सुशील शुक्ल कवि और लेखक हैं. वे बच्चों के लिए किताबें और पत्रिकाएं शायां करने वाली संस्था इकतारा के निदेशक हैं। वे हिंदी बच्चों की पत्रिकाओं प्लूटो और साइकिल के संपादक हैं। उनके कुछ पुरस्कृत किताबों में शामिल हैं:
• भाई तू ऐसी कविता क्यों करता है
• एक बटे बारह
• फेरीवाले
• टिफ़िन दोस्त
• यह सारा उजाला सूरज का
एपिसोड 3
इस एपिसोड में हम आज़ादी पर बच्चो की आवाज़ सुनेंगे. गांव–शहर, लड़का– लड़की, अमीर–गरीब, हिन्दू मुस्लिम और सिख परिवार – इन विभिन्न बच्चों ने आज़ादी पर अपने अलग– अलग, रोज़ी अनुभवों को साझा किया है. वो क्या बातें हैं जो उन्हें आज़ाद महसूस कराती हैं? क्या इस पर इन बच्चों की मुंहज़ुबानी सुन कर हम आज़ादी के स्वभाव के बारे में कुछ सीख सकते हैं?
अतिथि के बारे में
शुद्धब्रता सेनगुप्ता रक्स मीडिया कलेक्टिव के साथ एक कलाकार हैं. वो लेखक और राजनैतिक वक्ता हैं जो काफी समय और गहराई से आज़ादी पर विचार कर रहे हैं. रक्स मीडिया कलेक्टिव की स्थापना 1992 में हुई थी और उनका काम डॉक्युमेंटा, वेनिस, इस्तांबुल, ताइपे, लिवरपूल, शंघाई, सिडनी और साओ पाउलो bienalles में प्रदर्शित किया गया है। रक्स की रचनाएँ कई समकालीन कला संग्रहों और संग्रहालयों का हिस्सा हैं, और उनके निबंध कई संकलनों में प्रकाशित हुए हैं। शुद्धब्रत kafila.org के संस्थापकों और योगदान संपादकों में से एक हैं। उनकी राजनीतिक टिप्पणियाँ और निबंध भारत और विदेशों में व्यापक रूप से प्रकाशित हुए हैं।
स्वतंत्रता पर उनके कुछ लेखन में शामिल हैं:
• The Garden of Freedom
https://caravanmagazine.in/politics/lessons-that-shaheen-bagh-teaches-us-about-citizenship
• A modest proposal to end all controversies on freedom of expression in India
https://kafila.online/author/musafir/page/19/
• Art in the Time of CAA
https://caravanmagazine.in/arts/art-in-the-time-of-caa
एपिसोड 4
इस एपिसोड में जो कविता आप सुनेंगे वो बराबरी और ग़ैर-बराबरी के बारे में है | ये कविता एक बच्ची ने मुंबई के एक झुग्गी पुनर्विकास में स्थित एक लाइब्रेरी में लिखी थी | अपनी कविता में बराबरी और ग़ैर-बराबरी के जो उदाहरण उसने हमसे साझा किये हैं, उनसे उसका वास्ता रोज़ाना पड़ता है | ये उदाहरण उसके घर, स्कूल, पास-पड़ोस और उसके बाहर की दुनिया, यानी कि उसका देश, हिन्दुस्तान – इन सभी जगहों से हैं | शायद आप इनमें से कुछ उदाहरणों को पहचान लेंगे |
अतिथि के बारे में
मनीष जैन एक शिक्षक हैं जिन्होंने बच्चों और बच्चों को पढ़ाने वाले बड़ों, दोनों को पढ़ाया है | हम किस-किस तरह से अपनी दुनिया में बराबरी को बढ़ावा दे सकते हैं, यह ख़याल उनके काम का एक अहम हिस्सा है | मनीष डॉ. बी.आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली (AUD) में स्कूल ऑफ एजुकेशन स्टडीज में पढ़ाते हैं । उनकी शिक्षण और अनुसंधान रुचियों में इतिहास, राजनीति, शिक्षा के समाजशास्त्र शामिल हैं | वे नागरिकता-शिक्षा, शिक्षा नीतियों, शिक्षा के इतिहास और शिक्षक- शिक्षण के क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हैं । उन्हें कनाडा, जर्मनी और यूके के विश्वविद्यालयों में कई फ़ेलोशिप से सम्मानित किया गया है ।
उन्होंने निम्न किताबों का सह-संपादन किया है:
Education, Teaching and Learning: Discourses, Cultures, Conversations, published by Orient Blackswan
School Education in India: Market, State and Quality, published by Routledge
एपिसोड 5
बराबरी एक एहसास है
जब उनसे पूछा गया कि वे कब बराबर महसूस करते हैं और कब ग़ैर-बराबर, तो विभिन्न स्थानों के बच्चों ने काफ़ी मिलते-जुलते अनुभव साझा किए – जब कोई त्योहार एक साथ मनाया जाता है तो उन्हें बराबर महसूस होता है; जब एक शिक्षक दूसरे छात्र का पक्ष लेता है तो ग़ैर-बराबर महसूस करना या यह महसूस करना कि माता-पिता हमारे भाई या बहन की तरफ़दारी करते हैं | लेकिन ऐसे कई उदाहरण भी थे जो हर बच्चे के अपने अनुभव से निकल कर आये थे | इस एपिसोड की कविता में दोनों ही क़िस्म की आवाज़ें मौजूद हैं | कवि ने कैसे अपनी ज़िन्दगी में बराबरी और ग़ैर-बराबरी, और यहां तक की बेदख़ली का भी सामना किया है, उसको इस कविता में बेहद संवेदनशीलता से पिरोया गया है |
अतिथि के बारे में
तेजस्वी शिवानंद एक अध्यापक और लाइब्रेरी शिक्षक हैं | उनकी इस बात में काफ़ी रूचि और दख़ल है कि कैसे शिक्षा से जुड़े तमाम केंद्रों को लाइब्रेरी मूवमेंट का सक्रिय भागीदार बनाया जाए | वह चंपाका बुकस्टोर, बैंगलोर में क्यूरेटर हैं और पुस्तकालय कार्यक्रम का नेतृत्व करते हैं | वह बच्चों के साथ लगातार काम करते रहते हैं | उन्होंने कई वर्षों तक लाइब्रेरी एजुकेटर्स कोर्स (अंग्रेजी) में पढ़ाया है और फ़िलहाल वयस्कों के लिए चित्र-पुस्तकों पर एक कोर्स पढ़ा रहे हैं। उन्हें पुस्तकालयों और अभिलेखागार की जुगलबंदी से मुमकिन होने वाले बदलाव में गहरी रुचि है और वर्तमान में वे NLSUI पुस्तकालय, बैंगलोर के भीतर स्थित LGBTQI+ संग्रह, QAMRA के सलाहकार बोर्ड में रहते हुए इसकी खोज कर रहे हैं।
उनके काम के बारे में और अधिक जानकारी यहां पाएं:
https://champaca.in/collections/staff-recs-thejaswi-recommends
https://qamra.in/
एपिसोड 6
इस एपिसोड में जो कविता हम सुनेंगे, उसे फ़िरोज़पुर-पंजाब की रहने वाली एक बच्ची ने लिखा है. उसने दो-हज़ार-बीस-इक्कीस में चले किसान आंदोलन में लगातार भाग लिया था. दिल्ली की सीमा पर और अपने गाँव के पास– उसने दोनों जगह की protest में शिरकत की. यूं तो यह कविता बराबरी के बारे में सोचते हुए लिखी गयी थी, पर आप देखेंगे कि उस कवि-बच्ची के शब्द हमारी दुनिया के तमाम पहलुओं की ओर इशारा करते है. जिस तरह से एक बच्चे की दुनिया को माना जाता है, उसके शब्द उससे कहीं ज़्यादा बढ़कर दुनिया को देखते है. क्या बच्चों की दुनिया वाकई में बड़ों की दुनिया से छोटी होती है? क्या ऐसा मानने में हम बच्चों के अनुभवों में मौजूद अनगिन मायनों को नज़रअंदाज़ तो नहीं कर रहे?
अतिथि के बारे में
फराह फारूकी दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के शिक्षा संकाय के इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज इन एजुकेशन में शिक्षा की प्रोफेसर हैं। इससे पहले, उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज के प्राथमिक शिक्षा विभाग में आठ साल तक काम किया। फराह ने शिक्षा, पहचान, ghettoisation, सांस्कृतिक राजनीति और स्कूल ethnographies के मुद्दों पर लिखा है। फराह हिंदी और अंग्रेजी दोनों में लिखती हैं। सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल के प्रबंधक के रूप में उनके अनुभव को एकलव्य ने “एक स्कूल मैनेजर की डायरी” के रूप में प्रकाशित किया था। उन्होंने इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, आईआईसी क्वार्टरली, लर्निंग कर्व, द कैरवैन, द वायर, शिक्षा विमर्श और कुछ अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे द फ्राइडे टाइम्स (लाहौर) और मैक्स वेबर स्टिफ्टंग (लंदन) जैसी कई पत्रिकाओं में भी प्रकाशन किया है। फराह ने 2006 और 2008 के बीच प्रकाशित कक्षा IV और V के लिए पर्यावरण अध्ययन के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की पाठ्यपुस्तकों में मुख्य सलाहकार और लेखक के रूप में योगदान दिया है। उन्होंने शिक्षकों और शिक्षक-प्रशिक्षुओं के लिए भी लिखा है।
Routledge द्वारा प्रकाशित उनकी हालिया पुस्तक का शीर्षक है, Education in a Ghetto: Paradoxes of a Muslim-Majority School (2023)। पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी यहां पाई जा सकती है: https://www.taylorfrancis.com/chapters/mono/10.4324/9781003407140-1/introduction-farah-farooqi
एपिसोड 7
जो कविता हम आज साझा करने वाले हैं वो गोवंडी, मुंबई में स्थित म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ रही एक 14 साल की बच्ची ने लिखी है | भारतीय संविधान में आश्वासित भाईचारे के मूल के बारे में वो क्या सोचती है, हमें इस कविता में देखने को मिलेगा | भाईचारे या अपनेपन के क्या-क्या मायने होते हैं? घर, स्कूल, आस- पड़ोस या देश में: अपनापन आखिर दिखता कैसा है? हम उसे कब-कब महसूस करते हैं ? जब हमको अपनेपन का अहसास होता है, तब? क्या हमारी पैदाइश या हमारा पता उसको तय करते हैं? भाईचारा होता कब है? जब हम सब एकजुट हो जाते हैं, तब? फिर उन हालातों का क्या जब एकजुटता मुमकिन ना हो? हमारा संविधान हमसे भाईचारे का वायदा करता है| क्या संविधान का वो वायदा आपस में भाईचारे के अहसास के लिए काफ़ी होता है? यह कविता हमें इस बारे में सोचने को कहती है और हमसे सवाल करती है कि क्या हम इस दुनिया को नया बना सकते हैं |
अतिथि के बारे में
निशा अब्दुल्ला बैंगलोर में स्थित एक थिएटर निर्माता हैं जो नाटककार, निर्देशक और शिक्षक के रूप में काम करती हैं। देखभाल, जिज्ञासा और साथ के मूलों की ज़मीन पर रहते हुए उनका काम अत्याचार के खिलाफ एक पुख़्ता आवाज़ उठाता रहता है | निशा को विशेष रूप से समकालीन सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में पहचान, अपनापन और सत्ता से रंगे हुए नज़रियों के बारे में सोचने में ख़ासी रूचि है । वह क़बीला की कलात्मक निदेशक हैं जहां उनका काम नए लेखन और असहमति से उपजी हुई कल्पनाओं को प्राथमिकता देता है | वह ऑफस्ट्रीम की संस्थापक सदस्य भी हैं जो एक कलाकार समूह है जहां जाति–विरोधी वकालत के आसपास रचनात्मक परियोजनाएं बुनी जाती हैं । निशा स्कूलों और विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाती हैं | हाल ही में वह अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी (बैंगलोर) और NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ (हैदराबाद) में गेस्ट फैकल्टी थीं।
उनके काम के बारे में और अधिक जानकारी यहां पाएं:
https://linktr.ee/nishaabdulla
एपिसोड 8
इस एपिसोड में पढ़ी गयी कविता एक एक्सरसाइज से निकल कर आयी है | बच्चों से कहा गया था कि वो अपनी रोज़ी ज़िन्दगी को टटोलें और सोचें की अपनेपन का अहसास उन्हें कब, कहाँ और किस तरह महसूस होता है | इसकी कवि चौदाह साल की हैं | वो गोवंडी में स्थित एक म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ती हैं | वो एक बेहद खचाखच भरे कम्पाउंड में रहती हैं | तमाम मुंबई में झुग्गी बस्तियों और सड़क किनारे रहने वाले लोगों के पुनर्वासन का काम कई सालों से जारी है | कवि जिस भरे हुए मोहल्ले में रहती हैं वहां पर रहने के अपने संकट होते हैं | साफ़-सफाई का अभाव, खेलने के लिए सुरक्षित जगहों का न होना और बिजली पानी का कोई भरोसा नहीं | ऐसे हालातों में बच्चे क्या महसूस करते हैं ? अभाव के माहौल में अपने आस-पास के लोगों से उनके रिश्तों पर क्या असर पड़ता होगा ? ऐसे में, अपनेपन का अहसास आखिर कहाँ से आता होगा?
अतिथि के बारे में
नताशा बदवार लेखक, फिल्मकार और शिक्षक हैं | उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में स्नातक हासिल करी थी | जामिआ मिलिआ इस्लामिया से मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स की पढ़ाई करी | फिलहाल नताशा अशोका विश्वविद्यालय सोनीपत में मीडिया स्टडीज़ विभाग में बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं | अपने करियर की शुरुआत उन्होंने NDTV के साथ बतौर कैमरा पर्सन की थी | ऐसा करने वाली वो हिन्दुस्तान की पहली महिलाओं में से एक रहीं | उनके लिखे गए कॉलम बीबीसी हिंदी, द ट्रिब्यून, मिंट लाउन्ज और द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट और अन्य सरीखी पत्रिकाओं में शायां हो चुके हैं | साइमन और सचस्टर से छपी My Daughter’s Mum and I एवं Immortal for a Moment संस्मरणों का लेखन भी नताशा के नाम हैं | हर्ष मंदर और जॉन दयाल के संग उन्होंने वेस्टलैंड बुक्स की किताब, Reconciliation, Karwan e Mohabbat’s Journey of Solidarity Through a Wounded India लिखी | हर्ष मंदार और अनिर्बान भट्टाचार्य के संग उन्होंने When the Mask Came Off: Lockdown 2020 लिखी | 2016 और 2022 में उन्हें रिपोर्टिंग और डाक्यूमेंट्री वर्ग में लाड़ली मीडिया और एडवरटाइजिंग पुरस्कार से सम्मानित किया गया |
और जानकारी के लिए देखें:
Natasha Badhwar on Twitter, Instagram, Amazon, LinkedIn, The Tribune and Mint Lounge
My Daughters’ Mum — Natasha Badhwar
Immortal for a Moment — Natasha Badhwar
Natasha Badhwar’s newsletter on Substack
Natasha Badhwar’s old blog on Blogspot
Natasha Badhwar’s Memoir Writing Course
Parenthood — Episode 43 of The Seen and the Unseen (w Natasha Badhwar)
Reconciliation: Karwan e Mohabbat’s Journey of Solidarity through a Wounded India — Edited by Harsh Mander, John Dayal and Natasha Badhwar
Why my daughters don’t go to school anymore — Natasha Badhwar interviewed by Manisha Natarajan. (Full video.)
The most important lesson learnt as an #unschooling parent — Natasha Badhwar
The Joys of Walking Out — Natasha Badhwar and Sahar Beg
To Fail Without Feeling Like A Failure — Natasha Badhwar
The real difference between my husband and me — Natasha Badhwar
Roger Ebert and me: How tragedy and Twitter bonded us across continents — Natasha Badhwar
In Conversation with Roger Ebert — Natasha Badhwar
A welcome note for new husbands and wives — Natasha Badhwar
Five things to learn from the man you love — Natasha Badhwar
Fatherhood is a funny thing — Natasha Badhwar
Imposter Syndrome.
What we say and what we mean, the fine art of small talk — Natasha Badhwar
एपिसोड 9
इस एपिसोड में जो कविता हम सुनेंगे, वो दो हज़ार बीस–इक्कीस में चले किसान आंदोलन के बारे में है. किसान आंदोलन में, हिन्दुस्तान के कई राज्यों के किसानों ने सरकार द्वारा पारित नए कृषि क़ानून का मिल कर विरोध किया था. देश में खेती- बाड़ी के अलग-अलग तरीके हैं| उसी तरह, नए कृषि क़ानून के बारे में अलग अलग रायें थी. उसके विरोध के अलावा कुछ समर्थक भी थे | वो आंदोलन करीबन एक साल से ऊपर जारी रहा | उसके मोर्चे कोरोना महामारी के दौरान भी बने रहे | किसान समुदाय से जुड़े लोग दिल्ली की सीमा पर अस्थायी कैम्पों में रहने लगे थे | पूरे–पूरे परिवार आ कर हफ़्तों उन कैम्प्स में ठहरते | उन परिवारों के साथ काफी बच्चे भी मोर्चे पर आते थे| उन बच्चों के लिए आंदोलन का अनुभव एक अलग ही अनुभव था | इस कविता में आप देखेंगे कि ऐसे अनुभवों का बच्चों पर क्या असर होता है | और ये, के ऐसे अनुभव बच्चों की समझ को कैसे ढालते हैं—-सत्ता, समुदाय और विरोध के बारे में|
अतिथि के बारे में
पूनम बत्रा प्राथमिक एवं शिक्षक शिक्षण के क्षेत्रों में हिन्दुस्तान के अहम् अकादमिकों में शुमार हैं | वो दिल्ली में स्थित केंद्रीय शिक्षा संस्थान, दिल्ली विश्वविद्यालय से जुडी रह चुकी हैं | उनका काम ज्ञान-सम्बन्धी विभिन्न विषयों से जुड़ा हुआ है, जैसे कि शिक्षा में सार्वजनिक नीति, पाठ्यक्रम और पढ़ाई-सम्बन्धी शोध, शिक्षकों का शिक्षण और लैंगिक अध्ययन | उनका हाली शोध स्कूल और शिक्षक शिक्षण से जुडी पॉलिटिक्स, कम्पेरेटिव एजुकेशन, ग़ैर बराबरी शिक्षा और उसकी निरंतरता को बनाये रखने के त्रिकोण, शिक्षकों का प्रशिक्षण जो कि औपनिवेशिक छाया से बाहर हो, और ऐसे ही कई विषयों पर रहा है | वो GCRF द्वारा फण्ड किये गए TESF India के दक्षिण संभाग के रिसर्च नेटवर्क की भारत मुख्या एवं को-इन्वेस्टिगेटर हैं|
और जानकारी के लिए देखें:
https://journals.sagepub.com/doi/abs/10.1177/0049085720958809?journalCode=scha
https://link.springer.com/article/10.1007/s11125-020-09518-6
https://www.tandfonline.com/doi/abs/10.1080/16823206.2013.877358
https://oxfordre.com/education/display/10.1093/acrefore/9780190264093.001.0001/acrefore-9780190264093-e-427
https://www.emerald.com/insight/content/doi/10.1108/S1479-367920190000036011/full/html
chrome-extension://efaidnbmnnnibpcajpcglclefindmkaj/https://tesfindia.b-cdn.net/wp-content/uploads/2023/07/Revised-TESF-Background-Paper-Addressing-Inequalities-Jan-2023.pdf
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https://tesfindia.iihs.co.in/
एपिसोड 10
हम हिंदुस्तानी वर्कशॉप्स के दौरान कितनी ही अलग आवाज़ें सुनने में आयीं. इस पॉडकास्ट श्रंखला के आख़िरी एपिसोड के लिए हमने उन जुदा आवाज़ों को बुन कर एक कविता बनायी है. ये एक साझे से बनी कविता है. इसे हमने आज़ादी के ख़याल पर की गयी exercise से बच्चों के एक-एक लाइन के जवाबों को जोड़ कर बनाया है. बच्चों की ख्वाहिशें घर में आज़ादी से ले कर बाहरी दुनिया में मनचाहे तरीकों से जीने तक फैली हुयी हैं. उनकी ख्वाहिशों के इस गुच्छे को सुनिए. शायद इसमें आपको अपने कोई ख़याल और अहसास मिल जाएँ.
ये हमारे पॉडकास्ट का आख़िरी एपिसोड है. लेकिन, हम सबको अपने जटिल और गूंथे हुए इतिहास को समझने की साझी कोशिश जारी रखनी होगी. हम उम्मीद करते हैं कि आपके लिए इस पॉडकास्ट ने खुद से परे अनुभवों और दुनियाओं पर ख़याल करती एक ज़मीन तैयार करी होगी. बच्चों की बातें और उनकी आवाज़ हमे इस अनेकता को देखने, उसे मज़बूत करने और उसका जश्न मनाने के लिए प्रेरित करते हैं. बस, इसी ख़याल का नाम है – हम हिंदुस्तानी |
अतिथि के बारे में
संपूर्णा चटर्जी लेखक, अनुवादक, सम्पादक और शिक्षक हैं | वो बच्चों और नौजवानों, दोनों के लिए लिखती हैं | उन्होंने विभिन्न भाषाओं के विभिन्न लोगों के साथ कविता लिखने पर काम किया है | उनकी 21 में से 9 किताबें बच्चों और युवाओं के लिए हैं | इनमें भयबाच्याका एंड अदर वाइल्ड पोयम्स (स्कॉलैस्टिक, 2019) ,जो की वेल्श कवि युरिग सेलिस्बरी के साथ हैं; ऐला द गर्ल हु इंटरड द अननोन (स्कॉलैस्टिक, 2013), द फ्रायड फ्रॉग एंड अदर फनी फ्रीकी फूडी फैस्टी पोयम्स (स्कॉलैस्टिक, 2009); एक रचनात्मक पुनर्कथा का संग्रह, द ग्रेटेस्ट स्टोरीज़ एवर टोल्ड (पेंगुइन, 2004) | वयस्कों के लिए उनकी किताबों में शामिल हैं: बम्बई मुम्बई, डर्टी लव (पेंगुइन, 2013) प जो की एक कहानी संग्रह है और कुल मिलाकर ग्यारह कविता की किताबें जिसमें सबसे हाली रही अनमेपेबल पोयम्स (पोएट्रीवाला, 2023) | संपूर्णा ने सुकुमार राय के कविताओं और गद्यों का अनुवाद भी किया है, वर्दीगुरडीबूंम (पफिन क्लासिक) | जॉय गोस्वामी की गद्य कविता आफ्टर डेथ कम्स वाटर (हार्परकॉलिंस, 2021) की तारीफ़ “जीती जागती, बनती फूलती जेम्स जॉयस सरीखी अंग्रेजी रचना” के रूप में की गयी है | वो आई. आई. टी. बम्बई के आई. डी. सी में छात्रों को लिखना सिखाती हैं | आप उन्हें इंस्टाग्राम पर ढून्ढ सकते हैं @ShampooChats.